शनिवार, 22 अप्रैल 2023

1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे वीर बाबू कुँवर सिंह - रंजीत राज


1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे वीर बाबू कुँवर सिंह - रंजीत राज

भोजपुर : बिहार के शाहाबाद (भोजपुर) जिले के जगदीशपुर गाँव में जन्मे बाबू वीर कुँवर सिंह का जन्म 1777 में प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में हुआ। इनके पिता का नाम साहबजादा सिंह और माता का नाम रानी पंचरतन देवी था। उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे! भारत की आजादी में सैकड़ो वीरों और वीरांगनाओं का अहम योगदान था। हजारों वीरो ने अपने प्राणों का आहुति दिया था, अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति में, इन्हीं योद्धाओ में से एक थे बिहार के 80 साल के योद्धा बाबू वीर कुँवर सिंह जी। जिन्होंने अपनी आयु और ढलते शरीर की परवाह किये बगैर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजा दिया था। वीर कुँवर सिंह को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक के रूप में जाना जाता है, जो 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने का माद्दा रखते थे। अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू वीर कुँवर सिंह कुशल सेना नायक थे। अपने ढलते उम्र और बिगड़ते सेहत के बावजूद भी उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि उनका डटकर सामना किया। अस्सी वर्ष की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ तलवार उठाकर उन्हें देश से भगाने के लिए कुँवर सिंह को आज भी याद किया जाता है। वह बिहार में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के मुख्य आयोजक थे । अपने पराक्रम के दम पर उन्होंने आरा, जगदीशपुर और आजमगढ़ को आजाद कराया था। वीर कुँवर सिंह ने जगदीशपुर के

किले से अंग्रेजों के झंडे को हटाकर अपना झंडा फहराया था। बतादे की वीर कुँवर सिंह सेना के साथ बलिया के पास शिवपुरी घाट से रात्रि के समय गंगा नदी पार कर रहे थे तभी अंग्रेजी सेना वहाँ पहुँची और अँग्रेजी सेनापति डगलस के आदेश पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाने लगी। वीर कुँवर सिंह इस दौरान घायल हो गए और एक गोली उनके बाँह में लगी। शरीर में जहर फैलने के डर से वीर कुँवर सिंह ने तत्काल अपनी
तलवार निकाली और हाथ काटकर गंगा में भेंट कर दिए। 23 अप्रैल 1858 को वे अपने महल में वापस आए लेकिन आने के कुछ समय बाद ही 26 अप्रैल 1858 को उनकी मृत्यु हो गयी। 23 अप्रैल 1966 को भारत सरकार ने उनके नाम का मेमोरियल स्टैम्प भी जारी किया। वीर कुँवर सिंह न केवल 1857 के महासमर के सबसे महान योद्धा थे बल्कि ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, “उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता” इन्होंने 23 अप्रैल 1858 में जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई लड़ी थी। बाबू वीर कुँवर सिंह भारतीय जनमानस के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। आने वाले समय में उनकी कृतियाँ नई पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। बाबू कुँवर सिंह वीरता, त्याग व बलिदान की प्रतिमूर्ति थे।1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को अस्सी वर्ष की उम्र में छक्के छुड़ा देने वाले ऐसे वीर बाँकुड़ा बाबू वीर कुँवर सिंह की जीवनी से आज के युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए।

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